गुरुवार, 7 मार्च 2013

अब मैं जवान होने लगा

दूर, बहुत दूर होने लगा-
बचपन का नटखटपन.


रहने लगा गंभीर.
सोचने लगा भुत, भविष्य और वर्तमान.
मुछो की रेघारिया-
अब स्पस्ट दिखने लगी.
अपने – पराये, उंच-नीच, जात-पात,
सब कुछ समझने लगा.
अब मैं जवान होने लगा.


“बेड टी”, काँफी, कोका-कोला ने -
जगह ले ली हैं,
गरम दूध और शरबत का,
दूध-रोटी, फल, सब्जियां, चबेना, सत्तू-
अब गले में अटकने लगे.
पिज्जा, बर्जर, चाऊ, मॉउ
चिकन, मटन की हड्डियाँ चबाने लगा,
अब मैं जवान होने लगा.

कुरता-पायजामा, गाँधी टोपी, बू सर्ट,
मेरे उत्सव के पहनावे,
घर में खुला बदन रहना अब-
बुरा लगाने लगा.
मां का सलीके से बाल सवारना,
काजल की काली बिंदी, रोली का टिका,
मन इनसे घबराने लगा,
थ्री क्वार्टर, जींस, टीसर्ट,
जेली लगाकर, मैं खुद अपनी-
बाले बिखेरने लगा.
अब मैं जवान होने लगा.


मां का दुलार, बहन का प्यार,
बाबूजी के अनुषाशन का पाठ-
सब बेकार की बात,
दोस्तों की सलाह,
सिनेमा, सिरीअल, इंटरनेट ने-
जो दिखाए राह,
उसी को पकड़ आगे बदने लगा.
अब मैं जवान होने लगा.

पूजा-पाठ, धर्म-कर्म,
मंदिर-मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा,
परिवार, समाज, देश.
सब संकीर्ण मानसिकता,
बार, डिस्को, नाईट क्लब,
अब यही मन को भाने लगा,
अब मैं जवान होने लगा.

होली, दिवाली, दशहरा,
ईद, बैशाखी, क्रिशमस,
भूल चूका हूँ अब तक,
वैलेनटाइन डे, रोज डे, फादर डे, मदर डे,
“किस डे” को मिस करने लगा,
अब मैं जवान होने लगा.


राजेश कुमार श्रीवास्तव 09836239131

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