रविवार, 21 अप्रैल 2013

भिक्षुक



भिक्षुक 

वह रोज सुबह उठ जाता /
दाने-दाने का मोहताज़,
जब है इतना विकसित समाज/
कभी इधर, कभी उस घर,
वह निश्चित ही कुछ पाता,
जब रोज सुबह उठ जाता /


बिछावन उसका फुट-पाथ /
नहीं है उसे ऊँचे महलो की चाह /
अपने अधनंगे बदन से सबको-
अपना दुःख सुनाता /

वह रोज सुबह उठ जाता /
दुखी नहीं सुखी है वही-
भुत, भविष्य की चिंता नहीं है उसे /
रोज मांगकर लाता है -
पेट भर नंगी राहो पर-
नितदिन वह सो जाता है-
फिर खूब सुबह उठ जाता है 

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