शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

ठुठ (पेड़)


ठुठ  (पेड़)  

हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
इस भरी दुपहरी में-
तुम्हारी तपन मिटाने  के लिए -
मेरे पास अपने हरे कोमल पत्तियों की छाया नहीं हैं।

हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
आज इस निर्जन भूखंड पर-
तुम्हारी   क्षुधा मिटाने के लिए-
मेरी सुखी डालियों में अब फल नहीं है। 

हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
इस चिलचिलाती धुप में-
तुम्हारी तृष्णा मिटाने के लिए-
मेरी काया में अब रत्ती भर कहीं रस नहीं है। 

लेकिन, हे! पथिक-
कभी मेरी हरी- हरी डालियों में लदी -
हरी-हरी पत्तियां, अपनी मृदु छाया से-
मिटाती थी तपन अनगिनत पथिकों की।

मेरी डालीयों से लटकते-
मीठे रसीले फल-
सदैव रहते थे तैयार मिटाने को-
क्षुधा, तृष्णा गुजरते हर पथिकों की।

मेरे पास की झाडीयां और-
हरी, मुलायम घासें, मेरी सहेलियां 
जिसपर बैठ कर आराम पाते थे तुम।
और, तुम्हे सुकून में देखकर खिल उठता था चेहरा हमारा ।

लेकिन आज तुम्हारी ही नजर-
मुझ पर पड़ गई।
अति दोहन के लिए तुमने-
भर डाला मेरे निचे की जमीं को-
खतरनाक रसायनों से।

अब मुझे मिट्टी से -
नहीं मिलता-
जीवनदायक खाद्य और जल।
मिलने लगा है जिवननाशक रसायन। 

तुमने बढानें के लिए अपनी तपन-
जला डाला मेरी हरी -भरी डालियों को-
अब बिछुड़ गई मेरी सहेलियाँ भी,
खडा हूँ मैं ठुठ , नीरस अकेला।

अब मैं असमर्थ हु-
मिटाने में तुम्हारी तपन, क्षुधा और तृष्णा।
 मुझे माँफ करना।
 हे ! पथिक मुझे माँफ करना।
    












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