सोमवार, 23 दिसंबर 2013

शीलाजीत का भीष्म-प्रतिज्ञा (लघु कथा)

शीलाजीत महाशय ने पड़ोशी के यहाँ अनुष्ठान में पक रहे मिष्ठानों  के रंग, स्वाद और सुगंध कि बड़ाई क्या कर डाली, उपस्थित लोगो ने उनको याद दिलाना आरम्भ कर दिया कि इन मिष्ठानों को खाना तो दूर चखने का भी वे  ख्याल  ना पाले क्योकि इन मिष्ठानों के नाम पर ही  शीलाजीत महाशय चिढ़ते रहे है / उनके विचार में मिष्ठान ही आज समस्त बिमारियों का जड़ है /  हालांकि वे अब अपने मत में परिवर्तन करके मिष्ठान से तो प्रेम कर लिया है लेकिन उसमे डाले जाने  वाले  घी और शककर से अभी भी चिढ़ते है / वे मिष्ठान के शुद्धिकरण  के लिए इनके विकल्प में स्वयं का कोई पदार्थ मिश्रित करना चाहते है /
शिलाजीत जी ने भी जज्बात में आकर भीष्म - प्रतिज्ञा कर  डाला

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

एड्स


मैंने डॉक्टर के चेम्बर से निकलते हि प्रिस्क्रिप्सन पर एक नजर डाला /
ठीक मेरे नाम और उम्र के नीचे अंग्रेजी में जो कुछ लिखा था उसका अर्थ था कि मेरे दाहिने पैर में एक घाव लगभग दो सप्ताह से है / साथ में मंद-मंद बुखार भी है /
ठिक हि तो है,  मैंने भी डॉक्टर से यही बतलाया था/ घाव जब छोटा था तभी से कुछ घरेलु उपचार किया फिर मेडिकल स्टोर से दवा लाकर खाया लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ/ जब दर्द बढ़ने लगा और बुखार भी आने लगा

फेसबुक


"अबे स -I ---ल--/ मैं आधे घंटे से तेरे सामने बैठा हूँ / तेरे डब्बे की सारी बिस्किट खा चुका / अपना और तेरा, दोनों चाय का कप शेष कर डाला / लेकिन तू है क़ि कम्प्युटर  से नजर ही नहीं हटाता/ स -I ---ल-- अब तू कम्प्युटर चला और मैं चला /" मैं गुस्से से कुर्सी से उठते हुए दरवाजे क़ि ओर बढ़ा / गुस्सा आना भी स्वाभाविक था / मेरा इसके यहाँ आये आधे घंटे से ज्यादा बीत चुका था/ वह बिना  कम्प्युटर के स्क्रीन से नज़र हटाये मुझे

रामू काका


"अरे! बबुआ / तुम कईसे-कईसे यहाँ पहुँच गए /" रामू काका अचानक मुझे दरवाजे पर खड़ा पाकर हैरान थे / दरवाजा खोलकर झट मुझे अपनी गोद में उठाना चाहा / लेकिन अब मैं इतना भारी हो गया था कि काका उठाने के अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाये /
मै हंसते -हंसते उनसे लिपट गया और बोला " काका अब मैं बड़ा हो गया हूँ / मुझे अब तुम गोद में नहीं उठा सकते /" काका ने तुरंत मुझे अपने गले से लगा लिया /
रामू काका मेरे घर में लगभग बीस वर्षों से नौकरी करते है / छोटा कद, गहरा रंग , घुटने तक धोती और बाहों

बलात्कार


कल फिर एक बलात्कार की खबर को कवर करने के लिए शहर से पच्चीस किलोमीटर दूर  चिरौली नामक एक गाँव में जाना पडेगा- यह सोच कर ही मन काँप उठता है / चिरौली गाँव जाने का रास्ता बहुत ही दुर्गम हैं / कोई गाड़ी या बस उस गाँव तक नहीं जाती/ कच्चे रास्तों से होकर उस गाँव तक पहुचने का एकमात्र साधन साइकिल ही हैं / नहीं तो पैदल चलना छोड़कर कोई उपाय नहीं / लेकिन जब प्रोड्यूसर साहब का आदेश है तो जाना ही पडेगा / रात के दस बज रहे है और खाने के मेज पर भोजन भी परोस दिए गए हैं / लेकिन फिर भी मैं कल सुबह निकलने की तैयारी पूरी कर ले रहा हूँ /

की-बोर्ड का जादूगर (व्यंग कविता)


कागज़, कलम, पेंसिल, दवात /
हो गई ये पुरानी बात /
आधुनिक युग का लेखक हूँ मैं /
नई-नई तकनिकी अपनाता हूँ /
मॉनिटर, माउस, लैपटॉप, टैबलेट /
की-बोर्ड का जादूगर कहलाता हूँ /