रविवार, 21 अप्रैल 2013

Mother India


 मेरी चित्रकारी 

मैंने अपने कैनवास पर -
एक चित्र उकेरा है /
हरा, लाल, पिला, नीला , भगवा, सफ़ेद,
जहाँ जो पाया भरा है /
लेकिन सभी रंग मिलकर -
इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाये हैं /
कहीं गहरे तो कही उभरे,
मैंने भी क्या इनमे मेल बिठाये हैं /
क्या नाम दू इस खुबसूरत चित्रकारी को-
समझ नहीं पाया /
इसलिए मैंने कुछ विद्वान बुला लाया /

भिक्षुक



भिक्षुक 

वह रोज सुबह उठ जाता /
दाने-दाने का मोहताज़,
जब है इतना विकसित समाज/
कभी इधर, कभी उस घर,
वह निश्चित ही कुछ पाता,
जब रोज सुबह उठ जाता /


बिछावन उसका फुट-पाथ /
नहीं है उसे ऊँचे महलो की चाह /
अपने अधनंगे बदन से सबको-
अपना दुःख सुनाता /

वह रोज सुबह उठ जाता /
दुखी नहीं सुखी है वही-
भुत, भविष्य की चिंता नहीं है उसे /
रोज मांगकर लाता है -
पेट भर नंगी राहो पर-
नितदिन वह सो जाता है-
फिर खूब सुबह उठ जाता है