सोमवार, 23 दिसंबर 2013

शीलाजीत का भीष्म-प्रतिज्ञा (लघु कथा)

शीलाजीत महाशय ने पड़ोशी के यहाँ अनुष्ठान में पक रहे मिष्ठानों  के रंग, स्वाद और सुगंध कि बड़ाई क्या कर डाली, उपस्थित लोगो ने उनको याद दिलाना आरम्भ कर दिया कि इन मिष्ठानों को खाना तो दूर चखने का भी वे  ख्याल  ना पाले क्योकि इन मिष्ठानों के नाम पर ही  शीलाजीत महाशय चिढ़ते रहे है / उनके विचार में मिष्ठान ही आज समस्त बिमारियों का जड़ है /  हालांकि वे अब अपने मत में परिवर्तन करके मिष्ठान से तो प्रेम कर लिया है लेकिन उसमे डाले जाने  वाले  घी और शककर से अभी भी चिढ़ते है / वे मिष्ठान के शुद्धिकरण  के लिए इनके विकल्प में स्वयं का कोई पदार्थ मिश्रित करना चाहते है /
शिलाजीत जी ने भी जज्बात में आकर भीष्म - प्रतिज्ञा कर  डाला