शनिवार, 11 जनवरी 2014

दादाजी


दादाजी नब्बे वर्ष के हो गये है लेकिन आज भी उतने ही सक्रीय रहते है जितना वे अपने पचास- पचपन के उम्र में रहा करते थे / हालांकि अब उन्हें चलने -फिरने में तकलीफ होती है और बोलते समय भी जबान लड़खड़ाती है / दांत तो रहे नहीं लेकिन चश्मे कि जरुरत नहीं पड़ती / आजतक कभी घडी नहीं पहनी लेकिन कभी भी समय पूछो,  सठिक समय बतलाते है / कहते है कि मनुष्य यदि अपनी  सांसों की गति को पहचान ले तो वह बिना घडी के ही सठिक समय बतला सकता है / जब भी उन्हें समय जानने कि जरुरत पड़ती है अपनी उंगली  को नाक  के पास  ले जाते  है, सांसों की गति देखते है  और एकदम सही समय बतला देते है / गांव में द्वार पर आराम- कुर्सी  लगाकर बैठ जाते है और अपने हमउम्र साथीयों के साथ अखबार पढ़ना और आज-कल के आधुनिक समाजव्यवस्था की खामियां गिनाना ही उनके आलोचना का मुख्य विषय-वस्तु रहता है /