गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

रावण दहन

दो पैर , दो भुजाएँ /
चौड़ी छाती, मजबूत कंधे -
बिशालकाय शरीर बनाई /
उस पर दस शीश लगाई /
पुतला निस्तेज पड़ा था /
फिर उसे सहारा दिया -
खड़ा किया /
फिर भी पुतला चुप था /
हाथों में हथियार थमाएँ /
आँखों में नफ़रत का रंग भरा /
पुतले में कोई हलचल ना हुई /
फिर भी मन ना भरा /
हाथ , पैर , पेट, पीठ ,
एक-एक अंग में बारूद भरा /
पुतला डरा, सहमा /
बारूद के जहर से कराहा /
लेकिन कुछ ना किया ना कहा /
फिर उस बारूद में आग लगा दी गई /
पुतला धूं- धूं करके जलने लगा /
अपने को बचाने के लिए /
छटपटाने लगा /
जलते बारूद बिखरने लगे /
लोगों पर गिरने लगे /
लोग जलने लगे /
गिरने -पड़ने लगे /
भागने चिल्लाने लगे /
एक दूसरे को कुचलने लगे /
अगले दिन लोगों ने कहा /
रावण, सचमुच बड़ा शैतान था /
पुतले की आत्मा ने अट्टाहास किया /
रावण बड़ा शैतान था ?
बनाया इसको -
वो क्या इंसान था ?

ना मेरा राम बुरा है ना तेरा रहीम बुरा है /

ना हिन्दू बुरा है ना मुसलमान बुरा है /
कौन कहता है अपना हिन्दुस्थान बुरा है /
करे जो वतन से गद्दारी, धरम के नाम पर /
मै कहता हूँ उनका इमान बुरा है /
ना मेरा राम बुरा है ना तेरा रहीम बुरा है /
दोनों के दिमाग में बैठा शैतान बुरा है /
कराता है अधर्म लेकर नाम धर्म का /
इंसान के भेष में घूमता हैवान बुरा है /
ना तेरा कुरान बुरा है ना मेरा पुराण बुरा है /
किया गलत व्याख्या, जो, वो इंसान बुरा है /
जैसे छुआ नहीं कभी तूने पुराण हमारा /
बिना पढ़े हमने भी कह दी तेरा कुरान बुरा है /
ना मेरे मंदिर की आरती ना तेरा आज़ान बुरा है /
तू यहाँ ना आये मै वहाँ ना जाऊं यह फरमान बुरा है /
मै तेरा कलमा पढूं, तू भजन मेरा गाये /
इससे रोके जो धरम, उसका भगवान बुरा है /

प्रेम की परिभाषा

उसने
मेरे शब्दकोष के -
प्रेम की परिभाषा को -
बदल दिया /
सच कहुँ,
उसकी नई परिभाषा ने -
मुझ जैसे “पप्पू” को-
आधुनिक “रोमियो” -
बना दिया /
उसे अपनाना ,
गले से लगाना,
उसके जरुरतो और -
शौक पूर्ति के लिए -
खून पसीने बहाना /
सोते -जागते ,
उसी को याद करना /
चेहरा याद आते -
खुशियों से भर जाना /
उसके दुःख से दुखी /
उसके ख़ुशी से खुश /
अपनी पहचान खोकर ,
उसके रंगों में रंग जाना /
बकवास लगते थे उसे /
इसलिए उसने -
शब्दों को बदला /
पंक्तियों को छोटा किया /
और लिख दिया -
किसी को-
अपना बनाने के लिए -
“अपनो” को भूल जाना -
यही प्रेम है /
आधुनिक प्रेम है /

सीख

अक्सर जब घर में कमाने वाला एक और खाने वाले अत्यधिक हों तो जो हाल होता है वही हाल सुधीर का था/ उसके अलावा, परिवार में माता -पिता,एक बेरोजगार भाई, एक अविवाहित बहन और एक तलाकशुदा बहन अपने दो-दो बच्चों के साथ एक ही घर में रहते थे / सभी के खर्च का जिम्मा सुधीर ही उठाता था / पिताजी रिटायर्ड हो चुके थे और नाम मात्र का पेंशन पाते थे / छोटा भाई और बड़ी बहन ट्यूशन पढ़ाकर मामूली आय करते थे / माँ हमेशा बीमार रहती थी / माँ के इलाज और छोटी बहन के पढाई में अच्छा -खाशा खर्च होता था / सुधीर एक कंपनी में इंजीनियर था / उसकी आय अच्छी थी / लेकिन सारा आय परिवार में ही खर्च हो जाता था / सुधीर भी परिवार के ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी मानता था / अच्छे पोस्ट और अच्छे आय के वावजूद वह साधारण जीवन व्यतीत करता था/ उसे इसका कोई अफ़सोस नहीं रहता की अच्छे आय के वावजूद वह अपनी निजी इच्छाओं को पूर्ति करने में असमर्थ था/ लेकिन धीरे -धीरे सहकर्मियों के पहनावों -ओढ़े, खान-पान, जीवन -यापन को देख देखकर उसके सोच में परिवर्तन होने लगा / उसे लगने लगा की इतना अच्छा कमाने के वावजूद वह अपने लिए अलग से कुछ खर्च नहीं कर पाता / उसे भी आधुनिक और मौज-मस्ती की दुनिया लुभाने लगी / परिवार के साथ रहकर ऐसा सम्भव नहीं था / इसलिए उसने घर छोड़कर बाहर नौकरी के लिए जाने का निर्णय किया /
घर के लोग उसके निर्णय से खुश नहीं थे / लेकिन उसे उनलोगों की परवाह ना की / उसने घरवालों को समझाया कि बाहर जाना उसके कैरियर के लिए बहुत जरुरी है /
कुछ ही दिनों में उसे दूर मुंबई शहर में एक अच्छी कंपनी में काम करने का ऑफर मिला / वह मुंबई जाने के लिए स्टेशन पहुँचा / टिकट कटाकर समय सारणी बोर्ड पर ट्रेन का समय देख रहा था / अचानक उसे पीछे से अपने पैंट को खीचने जैसा महसुस हुआ / उसने मुड़कर देखा मैली कुचली, फटी सलवार कुर्ती पहने हाथ में कटोरे लिए एक किशोरी भीख मांग रही थी /
सुधीर को अपनी तरफ मुड़कर देखते ही वह बोल उठी -” बाबू पांच रूपये दो ना भूख लगी है भात खाऊँगी /”
सुधीर-” पांच रुपये में भात मिल जाएगा /”
किशोरी-” हाँ बाबू और कुछ लोगों से मांगकर भात खा लुंगी / पांच रुपये दो ना / भगवान तुम्हे भला करेगा /”
किशोरी की रोनी सूरत देखकर सुधीर को दया आ गई /
सुधीर-” यहाँ भात कितने का आता है ?”
किशोरी-” पचास रुपये का बाबू / ”
सुधीर-” कहाँ मिलेगा भात /”
किशोरी ने सामने एक होटल को दिखाकर कहा ” वहाँ /”
सुधीर ने घडी पर नज़र डाली अभी ट्रेन के आने में देर थी / उसने किशोरी से कहा ” चलो मैं तुम्हे भात खिलाता हूँ /” फिर वह उस होटल की ओर बढ़ने लगा /
किशोरी उसके रास्ते में खड़े होकर आगे बढ़ने से रोका और बोली ” काहे को इतना कष्ट करोगे बाबू / मुझे रुपये दे दो मैं खा लुंगी /”
सुधीर – ” तुम मेरे कष्ट की चिंता मत करो / चलो तुम्हे जो खाना है खाओ / जितने पैसे होंगे मैं दे दूंगा /”
किशोरी -” तो एक काम करो बाबू तुम मुझे पचास रुपये दे दो मैं खुद खा लुंगी /”
सुधीर -” पैसा तो मै तुम्हारे हाथ में नहीं दूंगा / तुमलोग पैसा लेकर गलत जगह खर्च कर देते हो / चलो जो खाना है खाओ मैं पैसा चुका दूंगा / और तुम्हे तो बहुत भूख भी लगा है ना/”
किशोरी ने अपने दोनों कानों को पकड़ते हुआ कहा -: कसम से मैं वैसी नहीं हूँ / तुम नहीं समझते बाबू / मैं अभी नहीं खा सकती /”
सुधीर-” क्यों नहीं खा सकती ?”
किशोरी-”घर वाले भूखे है ना /”
सुधीर ने उत्सुकता दिखाते हुए पूछा ” कौन-कौन हैं तुम्हारे घर में ?”
किशोरी-” बाबा बीमार है / खाट पर पड़े रहता है / माँ उसकी देखभाल में लगी रहती है / छोटा भाई है लेकिन उसे ठीक से भीख मांगने नहीं आता /”
सुधीर-” तो तुम खा लो / वे लोग भी बाद में खा लेंगे /”
किशोरी -” एक काम करोगे बाबू / तुम मुझे जितने के खाना खिलाना चाहते हो उतने का मुझे चावल, दाल और अंडे खरीद दो /”
सुधीर -” इससे क्या होगा?”
किशोरी -” हमलोग आज घर में पार्टी करेंगे / दाल भात के साथ आमलेट / बहुत अच्छा लगेगा / बहुत दिन हो गया ऐसा खाना नहीं मिला/”
सुधीर -” लेकिन पचास रुपये में जो सामान आएगा उससे तो दो लोगों का मुश्किल से भोजन हो पायेगा / और तुम्हारे घर में तो चार सदस्य है / ”
किशोरी -” उससे क्या होगा बाबूजी / थोड़ा -थोड़ा कम खाएंगे लेकिन सब मिलकर खाएंगे / अकेले भर पेट दावत उड़ाने से ज्यादा मजा एक साथ मिलकर खाने में आता है बाबूजी / भले ही थोड़ा कम क्यों ना हो /”
किशोरी की बात को सुनकर सुधीर को स्वयं से घृणा होने लगा / उसने अपना इरादा बदल दिया / पॉकेट से एक सौ रुपये का नोट निकालकर उस किशोरी के हाथों में रखते हुए बोला “मुझे सिख देने के एवज़ में मेरी ओर से यह गुरुदक्षिणा /”
फिर उसने टिकट लौटाए और ख़ुशी-ख़ुशी घर की ओर लौट पड़ा/

फेक-बुक

उस अधेड़ के बातों से तमतमाते हुए महिला ने कहा -” औरतो के साथ तमीज से पेश आना सीखिये /”
अधेड़ -” पहले आप औरतों के जैसा व्यवहार करना सीखिये /”
महिला ने और जोर से चिल्लाया -” क्या खराबी है मेरे व्यवहार में ? थोड़ा खिसक कर बैठने के लिए क्या कहा आप तो पूरा सर आसमान पर उठा लिए /”
अधेड़ ने कुछ नरम होते हुए कहा -” जब से आप बस में चढ़ी है तब से आप किसी ना किसी से लड़ ही रही है / पहले गेट पर खड़े यात्रियों से अंदर आने के लिए लड़ाई की / फिर कंडक्टर से खुदरा पैसे के लिए लड़ा / अब बैठने के लिए मेरे से लड़ रही है / अब आप ही बताइये मै किधर खिसकु ?”
महिला-” तो आप को मैं लडाकूँ महिला लग रही हूँ /”
अधेड़ (थोड़ा मुस्कुराते हुए ) ” महिला तो आप किसी एंगल से नहीं लग रही है लेकिन लड़ाकान जरूर लग रही है /”
अधेड़ की बातों ने महिला को जितना दुःख नहीं पहुचाया उसकी मुस्कराहट ने उससे ज्यादा उत्तेजित कर दिया / उसने हाथ नचाते हुए कहा-” चेहरा देखा है आपने अपना आइना में / एक नंबर के खडूस लगते हो / एक औरत खड़ी है और आप मर्द होकर मजे से पसरकर बैठे है / शर्म आनी चाहिए आपको / औरतों का सम्मान करना नहीं जानते / ”
अधेड़ भी ताव में आ गया ” औरतों का सम्मान करना हमें अच्छी तरह आता है / लेकिन जो औरत जींस पेंट और टॉप पहनकर मर्द की बराबरी करना चाहती है उनके लिए कोई सिम्पैथी नहीं है हमारे दिल में /”
” हम औरते क्या पहने क्या नहीं पहने ये भी आप मर्द तय करेंगे /”
” नहीं / आप स्वतंत्र है, आप जो इच्छा पहने जहां मन करे जाएँ और जितनी रात तक इच्छा करे बाहर रहे, कोई मना नहीं करेगा / लेकिन इतना ही है तो मर्दों से सिम्पैथी की आशा नहीं रखे /”
” अपनी सड़ी महिला विरोधी मानसिकता अपने पास रखिये / नहीं बैठना मुझे / और पसरकर बैठ जाइये / अभद्र, अशिक्षित, गवाँरु कही के / जैसा कुरूप चेहरा ठीक उसी तरह की मानसिकता /” महिला ने ताना कसा /
अधेड़ व्यति (गुस्से से लाल होकर)- ” ओय मैडम / ज़रा जबान संभल कर बोलिए / टॉप और जींस चढ़ा लेने से कोई शिक्षित नहीं हो जाता / आवाज़ तो कौवे जैसी है /जबान लड़ाना और ऐसा व्यवहार —कोई अपने पास बैठाना तो दूर देखना भी ना चाहे/ चेहरे से औरत और पहनावे से मर्द, दोनों के मिश्रण से हिजड़ा लग रही हो /”
हिजड़ा शब्द सुनकर महिला का खून खौल गया / उसने उंगली दिखाते हुए कहा – ” मेरे धैर्य की परीक्षा ना लो / महिलाओं के साथ बदतमीजी कर रहे हो /अभी पुलिस में कम्प्लेन की तो जेल की हवा खाने लगोगे /”
अधेड़ ने भी निर्भीकता से जबाब दिया -” कम्प्लेन कर के देख लो / मेरा नाम रोहित लाल है और राजपुर का रहने वाला हूँ / वहां स्कूल में शिक्षक हूँ / जाओ जहाँ जाना है जाओ /”
अधेड़ का परिचय सुनते ही महिला का गुस्सा एकाएक गायब हो गया / उसने आश्चर्य होकर पूछा / ” वो — आप राजपुर के समाजशास्त्र के सर है ? मुझे पहचाना / मै मृदुला / आपकी फेसबुक फ्रेंड /”
अधेड़ ने आश्चर्य से महिला की ओर देखकर कहा -” आप मृदुला अरोरा जी है / लेकिन आप के प्रोफाइल पिक्चर तो आपसे मेल नहीं खाता /”
” मैंने अपने प्रोफाइल में एक दक्षिण भारतीय सिनेमा के नायिका का फोटो लगाया है / आप भी तो अपने प्रोफाइल पिक्चर में गोर चिठ्ठे जवान लगते है / ” महिला ने शिकायत के लहज़े में कहा /
” वो मेरे कॉलेज के समय का पिक्चर है / एडिट करके लगाया है /” अधेड़ शरमा रहा था /
महिला-” फेसबुक में तो आप मुझे और मेरे विचारों को बहुत लाइक करते है / आपने अपने कॉमेंट में मुझे सादगी की मूर्ती, नवीन विचारों वाली, आधुनिक , विदुषी और ना जाने कितने सुन्दर-सुन्दर विशेषणों से अलंकृत किया करते है / मेरे पोस्ट आपको प्रगतिवादी लगते है / मेरे द्वारा पोस्ट की गई महिलाओं के तस्वीरों को तो आप खूब लाइक करते है / जींस पेंट वाली लड़कियों के तस्वीर वाले पोस्ट पर आप कॉमेंट में खूब शायरियां लिखते है /”
अधेड़-” आप भी तो मुझे फेसबुक पर महिलावादी का तगमा पहनाया है / मेरे महिलाओं पर किये गए पोस्ट आपको बहुत पसंद आते है / मेरे प्रोफाइल पिक्चर पर तो आपने एक रोमांटिक ग़ज़ल ही कॉमेंट में पोस्ट किया था / और आज मै खडूस लगता हूँ?”
महिला (शरमाते हुए)- ” माफ़ कीजिये मैंने आपको गलत समझा / मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ /”
अधेड़-” गलत नहीं , सही समझा / फेसबुक पर मेरे विचार “फेक” होते है / वह सिर्फ टाइम पास या मनोरंजन के लिए पोस्ट किये जाते है / मैं परम्परावादी हूँ और महिलाओं के स्वतन्त्रता का स्वच्छंदता में दुरूपयोग का विरोधी हूँ /”
महिला-” मैं तो केवल लाइक और कमेंट के लिए कुछ भी पोस्ट कर देती हूँ / वे ना तो मेरे विचार होते है ना ही मेरे सोच / सुन्दर-सुन्दर लड़कियों के तस्वीर लगाकर किसी का लिखा हुआ शेर पोस्ट कर देती हूँ और लग जाती है लाइक और कमेंट की झड़ी / ”
बस की गति धीमी हुई तो अधेड़ ने अपने सीट से उठते हुए महिला से कहा ” मेरा स्टॉपेज आ गया / बाय / आप बैठ सकती है /”
फिर उसने महिला से अनुरोध किया -” मुझे ब्लॉक मत कर दीजियेगा / मनोरंजन और टाइमपास जारी रहना चाहिए / “

.....और भगवान अपने सिंघासन पर विराजमान हो गए

कमलपुर नाम का एक गाँव था /गाँव के लोग बहुत ईमानदार और मेहनती थे लेकिन इस गाँव में विकासः का कही कोई नामोनिशान नहीं था / गाँव के लोग खेतो में कड़ी मेहनत करते परन्तु कभी बाढ़ तो कभी सुखा उनके मेहनत पर पानी फेर देते / कड़ी मेहनत के वावजूद गाँव के लोग दो वक्त का भोजन अपने परिवार के लिए ठीक से नहीं जुटा पाते थे / उनके बच्चों को दूध-फल तो दूर, भरपेट अनाज भी नहीं मिलता था / प्रायः सभी बच्चे कुपोषण के शिकार थे / एकदिन गाँव के पंचायत में इसका कारण ढूढ़ा गया / और इसके निदान के लिए गाँव में एक भव्य मंदिर के निर्माण का फैसला किया गया / सब गांववाले अपने खर्च में कटौती करके मंदिर निर्माण के लिए धन एकत्रित करने लगे / इसके लिए उपवास भी रहना पड़ता था/ अगल-बगल के गावों में जाकर चंदे इकठ्ठा किया गया / जैसे भी हो कुछ महीनो में मंदिर बन कर तैयार हो गया / शिवरात्रि के शुभ मुहूर्त पर मंदिर का उद्घाटन करवाने का व्यवस्था किया गया / जोर-शोर से तैयारियां शुरू हुई / १०१ लीटर दूध से भगवान को स्नान कराना था / लोगो ने अपने बच्चों और बछड़ों को दूध ना पिलाकर भगवान को स्नान कराने के लिए दूध एकत्रित किया / कुछ दूध बाहर से दान में भी एकत्रित किया गया / भगवान को भोग लगाने के लिए ५६ तरह के व्यंजन तैयार किये गए / तरह-तरह के फलों को प्रसाद के रूप में चढाने के लिए मंगवाया गया / यज्ञ में आहुति देने के लिए १५१ लीटर घी का प्रबंध किया गया था / मंदिर में स्थापित करने के लिए देव-देवियों की मूर्तियों मँगा ली गई थी / काशी से एक विद्वान ब्राह्मण मूर्तियों में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए बुलाये गए थे / मूर्तियों के लिए सिंघासन सज-धज कर तैयार था / गाँव वालों ने इस कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा था / कई महीनो से बच्चों से लेकर जवान और बूढ़ों सभी ने अपने पेट काट कर इसके लिए धन एकत्रित किया था /
सुबह से ही भीड़ जमा होने लगी थी / कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही पूरा गाँव उमड़कर कार्यक्रमस्थल पर आ गया था / भगवांन के जय के नारों से आकास गूंज रहा था / छोटो-छोटे बच्चे वहा रखे गए दूध, पकवान और फलों को देखकर ललच रहे थे / १०१ लीटर दूध एकत्रित करने के चक्कर में उनको कई दिनों से दूध नहीं मिल पाया था / इतने तरह के व्यंजन गांववाले खाना तो दूर आजतक देखे भी नहीं थे / सबके मुंह में व्यंजनों के सुगंध से पानी आ रहा था / कुछ बच्चे इन्हे देखकर पाने के लिए मचलकर रोने लगे थे / लेकिन भगवान के जयकारे में इनकी रुलाई दब जा रही थी / शुभ मुहूर्त पर कार्यक्रम शुरू हुआ हुआ / मूर्तियों को उनके जगह पर ले जाने के लिए उठाया जाने लगा / लेकिन आश्चर्य कोई भी मूर्ति अपने जगह से हिलने का नाम नहीं ले रही थी / पुरोहित से लेकर यजमान और गांववालों के लाख प्रयास के वावजूद मामूली वजन की मुर्तिया टस से मस नहीं हो रही थी / धीरे-धीरे मुहूर्त शेष हो गया लेकिन ना मुर्तिया अपने जगह से हिली ना उन्हें उनके जगह पर स्थापित किया जा सका ना दुग्धाभिषेक हुआ ना प्राणप्रतिष्ठा / ५६ तरह के व्यंजन और फल भोग लगाने के लिए धरे के धरे रह गए / पंडित जी ने कहा जरूर कोई भूल -त्रुटि हुई है इसलिए भगवान नाराज हो गए है और वह उठ कर जाने लगे / चारो ओर निराशा और आशंकाए फ़ैल गई / लोग जड़ होकर खड़े थे / बच्चे अब भी दूध और फलों को देखकर ललच रहे थे / कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया / दूध और फलों को बच्चों में बाँट दिया गया / ५६ तरह के व्यंजन गांववालों को खिला दिया गया / आहुति देने के लिए मंगाए गए घी को बीमार और बच्चो में बाँट दिया गया / सभी लोग धीरे-धीरे अपने -अपने घर चले गए / तरह-तरह के व्यंजन खाने के वावजूद निराशा और आशंकाओं से सभी दुखी नजर आ रहे थे / बच्चे बड़े खुश नजर आ रहे थे / रात हुई / सभी लोग बिछावन पर सोने के लिए चले गए / लेकिन आँखों में नींद ना थी / अचानक निर्माणाधीन मंदिर से घंटों और घड़ियाल के आवाज सुनकर सभी चाौक गए / भागे -भागे सभी मंदिर के पास आये / वहाँ का नजारा देखकर सभी दंग रह गए / प्रदीप स्वयं जल रहे थे / घंटे यु बज रहे थे मानो कोई उन्हें जोर-जोर से बजा रहा हो / फूलों और चन्दन के सुगंध से पूरा मंदिर प्रांगढ़ गमक रहा था / भगवान की मुर्तिया स्वयं अपने सिंघासन पर विराजमान हो गई थी / लोग ख़ुशी से जय-जयकार करने लगे / भगवान की मुर्तिया उतनी ही खुश नजर आ रही थी जितने खुश दूध, फल, घी और स्वादिष्ट व्यंजन प्राप्त कर बच्चे और बुजुर्ग /
शिक्षा: जरूरतमंद की सेवा में ही भगवान की सेवा है / जीवों को कष्ट देकर भगवान को खुश नहीं किया जा सकता /

धर्म बड़ा या देश

एक राजा था / उसके नेतृत्व में राज्य सुरक्षित, खुशहाल और धन-धान्य से परिपूर्ण था / पडोशी राज्यों के राजा इस राज्य की खुशहाली देखकर ईर्ष्या करते थे / वे हमेशा इस ताक में रहते कि कोई मौक़ा मिले और इस राज्य पर चढ़ाई की जाय / लेकिन वे साहस नहीं कर पाते / राजा स्वयं सैनिक का भेष धारण कर सीमाओं की सुरक्षा का जायजा लिया करते थे / राजा को अपनों के बीच पाकर सैनिक भी उत्साहित होकर पुरे मुस्तैदी से सीमा की रखवाली करते / प्रजा भी खुद को सुरक्षित समझकर मेहनत और लगन से अपना काम करते / राज्य दिन पर दिन उन्नति के शिखर पर चढ़ते जा रहा था /
एक दिन कही से एक सन्यासी पधारे / उन्होंने राजा से राजमहल में धार्मिक प्रवचन करने की अनुमति मांगी / राजा ने अनुमति दे दी / एक सप्ताह तक राजमहल में प्रवचन और पूजा-पाठ का कार्यक्रम चलता रहा / राजा अपने पुरे परिवार और मंत्रिमंडल के साथ पुरे मनोयोग से इस कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिए / सन्यासी के प्रवचनों का राजा पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा की वे पुरे धार्मिक प्रवृति के हो गए / राज काज के कामों से अधिक वे पूजा-पाठ, प्रवचन, यज्ञ को प्राथमिकता देने लगे / मंत्री ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि इस तरह से धार्मिक क्रिया कलापों में ज्यादा समय देने पर राज-काज प्रभावित होगा/ लेकिन राजा ने उनकी एक ना सुनी / राजा ने मंत्री को सन्यासी का एक मन्त्र सुनाया जिसमे कहा गया था की “धर्मों रक्षित रक्षतः” अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है / अब राजा सीमाओं के जायजा लेने की बजाय धार्मिक क्रिया कलापों में ज्यादा वक्त गुजरने लगे / नवरात्र का समय था वे खुद नौ दिनों तक उपवास रहने का निश्चय किये और सभी राज्याश्रित कर्मचारियिों को भी उपवास रहने का आदेश जारी कर दिए / उनके आदेश का पालन हुआ और नौरात्र में सभी मंत्री, कर्मचारी, सिपाही, सैनिक नौरात्र का व्रत उपवास रहकर करने लगे / अभी चार -पांच दिन ही बीते थे की सभी की हालत उपवास रहने के कारण ख़राब होने लगी / सभी सैनिक कमजोर हो गए / राजा भी कमजोरी के चलते राजमहल के बाहर निकालना बंद कर दिए / मंत्री भी अपना काम नहीं कर पा रहे थे / सैनिक सीमाओं की निगरानी की जगह दुर्गा जागरण में लगे रहे / मौक़ा का फायदा उठाकर पडोशी राज्य के राजा ने आक्रमण कर दिया और राजा सहित सभी मंत्रिओं को बंदी बना लिया / राजा और उनके मंत्रिओं पर धर्म – परिवर्तन का दबाव डाला गया / राजा ने राज्य में खून खराबे के डर से धर्म परिवर्तन स्वीकार कर अपनी गद्दी पडोशी राजा के हाथों में सौप दी / इस तरह से वे अपनी धर्म और सत्ता दोनों से हाथ धो बैठे /

शिक्षा : जिस देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं वहाँ धर्म क्या कुछ भी सुरक्षित नहीं रह सकता /

सोमवार, 9 मार्च 2015

अन्तिम संस्कार ( एक कहानी )

पश्चिम बंगाल का एक छोटा सा शहर / शाम के सात बजने वाले है / अभिजीत अपने ऑफिस से घर लौट आया है / दरवाजे पर खड़े होकर घंटी बजाता है / उसकी पत्नी, पौलमी के दरवाजा खोलते ही वह अंदर प्रवेश कर जाता है / पौलमी दरवाजा बंद करते-करते बोल उठती है /
"लगता है तुम्हारा बुढ्ढा बाप इस बार का ठंढ नहीं सह पायेगा / "
" क्यों, क्या हुआ ? तबियत ज्यादा बिगड़ गई है क्या ?" अभिजीत ने पत्नी से जानना चाहा /
पत्नी-" आज सुबह से केवल खाँस रहा है / रामु (नौकर) से नाश्ता भिजवाया था / वो भी अभी तक नहीं खाया है / ना कुछ खा रहा है ना पी रहा है तो कब तक टिकेगा/"
- " तुमने जाकर देखा /" अभिजीत थोड़ा चिंतित नजर आने लगा /
पत्नी घबड़ाते हुए - " ना बाबा ना / मैं नहीं जानेवाली उसके पास / कही उसका संक्रमण मुझे ना लग जाये / और तुम भी ना जाना / रात में फिर से रामु से खाना भिजवा दूंगी / खाए तो भला ना खाए तो भी भला / बहुत दिन जी लिया बुढ्ढा / कही जाते -जाते अपनी बीमारी हमें ना दे जाय / "
अभिजीत को पत्नी के इच्छा के विरुद्ध कोई भी काम करने का साहस नहीं था / इसलिए  अपने बूढ़े बाप का खबर लेने का तिब्र इच्छा होने के बावजूद वह ऐसा नहीं कर पाया / वह चिंतित मन से सोफे पर बैठ गया / पौलमी भी उसके बगल में बैठ कर टीवी देखने लगी / वह चैनल बदल रही थी और अभिजीत बुझे मन से चुप-चाप बैठा रहा /
तीन व्यक्तियों का यह एक छोटा परिवार था/  पिताजी एक सरकारी कर्मचारी थे / उनको रिटायर हुए सात वर्ष बीत गए थे / अवकास ग्रहण के अगले ही वर्ष पत्नी भी स्वर्ग सिधार गई / एक ही लड़का है / उसके लालन-पालन से लेकर शिक्षा-दीक्षा का उन्होंने विशेष ध्यान रखा / आज वह एक बड़ी कंपनी में मैनेजर है / अवकाश ग्रहण के समय जो पैसा मिला उससे अपने छोटे से मकान को भव्य बनाया / बाहर एक गैरेज भी बनवा डाला ताकि भविष्य में कभी गाड़ी खरीदी जाय तो रखने में असुबिधा ना हो / लेकिन आज यही गाड़ी रखने की  जगह उनकी आशियाना बन गई है / बेटे और बहु ने गाडी की जगह उन्ही को उसमे रहने का प्रबंध कर डाला है / बुढ़ापा ने कमजोरी को और कमजोरी ने शरीर को बिमारियों का घर बना डाला / आज वो रात-दिन उसी गैरेज में गुजारते है / बहु समय -समय पर नाश्ता खाना भिजवा देती है / दवाइयों की भी व्यवस्था हो ही जाती है / बदले में उनको अपने पेंशन का एक-एक रुपया बहु के हाथों में सौप देना पड़ता है /
टीवी देखते - देखते अचानक अभिजीत ने पौलमी से  टीवी का साउंड बंद करने को कहा /
" क्यों क्या हुआ ? क्या सोचने लगे /" पौलमी ने पूछा /
" सोच रहा हूँ एक बार पिताजी को देख आऊँ / जाने क्यों मन घबड़ा रहा है /" वह सोफे से उठ खड़ा हुआ /
" ठीक है कल सुबह देख लेना /" पौलमी ने उसका हाथ पकड़कर फिर सोफे पर बैठा लिया /
" क्यों अभी क्यों नहीं ?" वह घबड़ाया हुआ लग रहा था /
पौलमी-" अरे कही मर-मुरा गया होगा तो ना रात में खाना-पीना हो पायेगा ना ही सोना/ सब छोड़कर शुरू कर देना पडेगा अन्तिम संस्कार की तैयारी /"
" हाँ / अब समय देखकर तो किसी की मौत आती नहीं / रात हो या दिन , गर्मी हो या ठंढ , जो हमारे संस्कार है वो तो करने ही होंगे /"
" जब सारी दुनिया तेजी से आधुनिक हो रही है तो ये संस्कार क्यों पुराने ही निभाने होते है मुझे समझ नहीं आता / अब कोई मर जाय तो अपना सारा काम-धाम छोड़कर पंडित बुलाओ, कफ़न खरीदो , धुप - बत्ती जलाओ, शमसान पहुंचाओं, मुखाग्नि दो, जलाओं, नहाओ, दस-बारह दिनों तक पड़े रहो श्राद्ध करो, ये क्या मुसीबत है / खुद तो मरकर स्वर्ग में आराम फरमाओं और दूसरों को परेशान करो / "
" पूर्बजो की बनाई इस प्रथा को बदला तो नही जा सकता /"
" ऐसा भी तो नहीं हो सकता की म्युनिसिपल वालों को खबर करो / कुछ पैसे दो और वही उठाकर ले जाय/ जो करना हो करे /"
" म्युनिसिपल वाले पशुओं के मृत शरीर को ले जाते है मनुष्य को नहीं/"
" हाँ पता है मुझे / लेकिन कोई तो संस्था होगी जो पैसे लेकर हमारे इस सड़े संस्कार की खाना पूर्ति कर दे /"
" हाँ मैंने इंटरनेट पर ऐसी कुछ सत्कार समितियों का प्रचार देखा है जो पैसे के बदले ऐसे काम कर दिया करती है /"
" तो खोजकर रखो ना ऐसे संस्थाओं का अता-पता, ताकि हमें परेशान होने की जरुरत नहीं पड़े /"
फिर दोनों इंटरनेट पर ऐसे सत्कार संस्थाओं के संपर्क खोजने में व्यस्त हो गए / अभी आधे घंटे भी नहीं हुए होंगे की बाहर से "आग-आग" की आवाज सुनकर दोनों घर से बाहर निकले / बाहर उनका गैरेज चारों और से धूं-धु करके जल रहा था/ जबतक दमकल वाले आते और आग बुझाते, पूरा गैरेज जलकर राख में तब्दील हो चुका था / आग की ऊँची - ऊँची उठ रही लपटों ने उस बूढ़े के साथ-साथ उसमे पल रहे संक्रमण के कीटाणु को भी राख में तब्दील कर दिया था /
गैरेज से दूर घर के दरवाजे पर एक कागज़ का टुकड़ा पड़ा था जिसपर लिखा था / मेरी अन्तिम संस्कार की चिंता तुमलोगो को करने की जरुरत नहीं / मैंने अपने माता-पिता और पत्नी के अन्तिम-संस्कार किये है / मुझे अपना अन्तिम संस्कार करना भी आता है /

बुधवार, 14 जनवरी 2015

अवकाश ग्रहण

सरकारी कर्मचारी

अवकाश ग्रहण के महीनो पहले -
सेवा निवृत हो जाता है /
बची -खुची छुट्टियों का-
जमकर लुफ्त उठाता है /
जिम्मेवारियों के साथ -साथ -
अपूर्ण फाइलों को-
कनिष्ठों की तरफ सरकाता है /
भविष्यनिधि, पेंसन, ग्रेच्युटी -
की सारी औपचारिकताएं -
रिटायर्ड होने के पहले ही -
जब पूरी कर पाता है /
तब वह चैन की वंशी बजाता है /

सैनिक

अवकाश ग्रहण का समय नजदीक आते ही-
शोक में डूब जाता है /
मातृ भूमि के सेवा से -
निवृत होने को याद कर -
ना सोता है ना जाग पाता है /
बचे -खुचे समय में-
अपने वतन की खातिर -
ज्यादा से ज्यादा योगदान हेतु-
वह मौत से भी नहीं घबड़ाता है /
फिर भी अवकाश ग्रहण के दिन-
वरिष्ठों के सामने-
सेवा अवधी विस्तार के लिए /
रोता है , गिड़गिड़ाता है /
मौक़ा मिलते ही -
फिर नई उत्साह से -
देश सेवा में लग जाता है /

नेता

पता नहीं अवकाश ग्रहण का -
समय क्या कहलाता है ?
आँखों से ना दीखता है /
ना कानों से सुन पाता है
पद पाने के लिए -
केवल दौड़ता चला जाता है /
वरिष्ठ हो तो कनिष्ठों को-
कनिष्ठ हो तो वरिष्ठों को-
लंगड़ी मार गिराता है /
अस्सी, नब्बे सौ बरस तक भी -
पद के लिए लार टपकाता है /
हाथ, पैर, जबान जब -
सब जबाब दे जाता है /
तब भी नेता -
अवकाश ग्रहण से कतराता है /